तुमसे, मैं मिलूंगा!

तुमसे, मैं मिलूंगा! जब तुम द्वंद – प्रतिद्वंद कीस्थिति से बाहर निकलोगे।तुमसे, मैं मिलूंगा! जब तुम प्रेम और घृणादोनों का त्याग करोगे ।।तुमसे, मैं मिलूंगा! जब तुम संतोष औरअसंतोष से ऊपर उठोगे।तुमसे, मैं मिलूंगा! जब तुम कल्प – विकल्पसे संकल्प में स्तिर होगे।।तुमसे, मैं मिलूंगा! जब तुम क्रोध – क्षमाका हरण करोगे।तुमसे, मैं मिलूंगा! जब […]

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पुष्प के विचार

अवधेश झा आपके मन में उठ रहे,सुंदर सृजनात्मक विचारोंमें से एक विचार हूं मैं ।सद हृदय, उत्तम व्यवहार,जिससे मार्ग दर्शित होता है,उनमें से एक अचार हूं मैं ।। पंख दर पंख, पंखुड़ियोंकी अमिट लालिमा सी,जीवन सौंदर्य का दर्शन हूं मैं।जीवन सुख या दुःख भाव में हो,कभी कम ना हो जिस प्रेमकी प्रभाह वह सुदर्शन हूं […]

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योग बसंत

अवधेश झा वसुधा में संचित उद्दीप्त यौवन,अष्ट-वायु से सुगन्धित अंतः मन।आनंद ह्रदय के कुंड श्रोत से,प्रकृति आभूषित आत्म उपवन।। भाव समर्पण दिव्य प्रेम से ,मधुर रागिनी हो जाता मन।नव सृजन इस सृष्टि का,निर्माणों उन्मुख है जीवन।। ज्ञानमयी देवी की वीणा,गूंजे दसों दिशाओं में ।अज्ञानता से कहीं दूर ,अंतः ज्ञान की उषाओं में।।

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पुष्प की यात्रा

अवधेश झा सीमा नहीं है, इस परिसीमन काखंड खंड में, बिखरा है मेला ।कन्ही दूर – दूर खड़ा है कोईअसंख्य तारों के मध्य अकेला ।। पूनम रात्रि की संध्या बेला,मध्यम, शीतल ऋतु अलबेला।जागृत तम, नव पंकज हृदयझांके जैसे बसंत की बेला।।

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पुष्प – योगिनी

अवधेश झा योग प्रभाती,सहज ही गाती,करती है नित्य प्राणायाम।वज्रासन लगा कर बैठे,श्वास पर होती है ध्यान।। यम-नियम से शुभारंभ करके,पतंजलि अष्टांग योग को प्रणाम।प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधिदिव्य-संकल्प बिना नहीं बनते काम।।

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पुष्प की वीरता

अवधेश झा अर्जुन के धनुष से निकली,राम की हूं मैं साध्य तीर।देखन में हूं सहज-सुंदर,घाव होते मेरे बहुत गंभीर।। वीरों के वक्षस्थल पर शोभती,शस्त्रों की होती है हम से पूजा।वीरांगाओं की मन की शक्ति हूं मैं,घर की पूजा में, मेरे सिवा न दूजा।।

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पुष्प का प्रेम

अवधेश झा मानस पटल से दर्शन,और खुले आंखों से बेचैन ।जग देखे जिस आंखों सेसास्वत सौंदर्य, वो है मेरी नैन।। मिलूं, गले लगू या अर्पित हूंमैं,जग से उनको समर्पित हूं।मुझे व्यथा नहीं मुरझाने की,मैं हर अवस्था में सारगर्भित हूं ।।

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पुष्प की भावना

अवधेश झा कांटो में भी रहकर,सुंदरता की मूरत ।ईश्वर हो या मनुजहै, तुम्हारी जरूरत ।। खिले जहां, खिल जाते हैवर्षों से सहमे मुस्कान उहां।महके तो महक उठे तन-मनपल्लवित पुष्पित वन उपवन।।

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पुष्प का मन

अवधेश झा पुष्प सुगंधित मन में,प्रिय खुसबू है आधार ।हृदय तरंगनी नव बसंत की,अभिलाषा तुम उसपार ।। दर्शन- सृजन प्रकृति की,नव नव आनंद का शृंगार ।तुम में भी वही हृदय छुपा,जिससे होता भाव विस्तार ।।

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The Dance of black clouds! Poem by Abdhesh Jha

The Dance of Black Clouds,It is dancing up anddown towards the earth!Feeding the magic withair to flow the water darth!! It is rain of naturethat dance around!Randomly falling,the thunder Sound!! The green surface of earthsake the hand of thunder!And measuring with crossfire that shows the wonder!! I am moving on &wind gives the way!Thunder crossing […]

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