दरभंगा, दिनांक 25 मई 2021:: सिद्ध विद्यापीठ गलमाधाम में छिन्नमस्ता जयंती मनाई गई। छिन्नमस्ता महाविद्या सकल चिंताओं का अंत करती है और मन में चिन्तित हर कामना को पूरा करती हैं। इसलिए उन्हें चिंतपूरनी भी कहा जाता है।
छिन्नमस्ता का अर्थ कुछ इस प्रकार है, मैं छिन्न शीश अवश्य हूं लेकिन अन्न के आगमन के रूप सिर के सन्धान (सिर के लगे रहने) से यज्ञ के रूप में प्रतिष्ठित हूं। जब सिर संधान रूप अन्न का आगमन बंद हो जाएगा तब उस समय मैं छिन्नमस्ता ही रह जाती हूं। इस महाविद्या का संबंध महाप्रलय से है। महाप्रलय का ज्ञान कराने वाली यह महाविद्या भगवती त्रिपुरसुंदरी का ही रौद्र रूप है। सुप्रसिद्ध पौराणिक हयग्रीवोपाख्यान का (जिसमें गणपति वाहन मूषक की कृपा से धनुष प्रत्यंचा भंग हो जाने के कारण सोते हुए विष्णु के सिर के कट जाने का निरूपण है) इसी छिन्नमस्ता से संबद्ध है।
पंचांग के अनुसार वैशाख माह में शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि (14वें दिन) को मां छिन्नमस्ता जयंती मनाई जाती है।
देवी के गले में हड्डियों की माला तथा कन्धे पर यज्ञोपवीत है। इसलिए शांत भाव से इनकी उपासना करने पर यह अपने शांत स्वरूप को प्रकट करती हैं। उग्र रूप में उपासना करने पर यह उग्र रूप में दर्शन देती हैं जिससे साधक के उच्चाटन होने का भय रहता है।
आज छिन्नमस्ता जयंती पर सिद्ध विद्यापीठ गलमाधाम में
आज पंद्रहवीं दिन पंडित जीवेश्वर मिश्र के सानिध्य में बटुकभैरव आपद्दुधारक मंत्र से हवन एवं महामृत्युंजय मंत्र से हवन एवं माँ पिताम्बरा भगवती के मंत्रो से हवन हुआ। हवनाग्नि का दर्शन करके अपने जीवन को कृतार्थ करने तथा सभी के लिए मंगल कामना किया गया।
Required contact no. of Padit Jiveshwar Mishra regading ththe Books