धधकते उत्तराखंड के जंगल

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  • सतीश मालवीय

उत्तराखंड, 15 अप्रैल, 2021:: ऐसा नही है की उत्तराखंड के वनों में पहली बार आग लगी है, इससे पहले भी वर्षो से यहाँ के वनों में आग लगती आई है, परन्तु इस बार की आग ने जो भीषण और विकराल रूप धारण किया है उसने पर्यावरणविदु,वन संरक्षकों और पहाड़ के निवासियों के सामने काफी चुनौतीपूर्ण और चिंतनीय परिस्थितियां ख़डी कर दी हैं।
जंगल में बढ़ती आग की घटनाओ ने हिमालय के परिस्थितिक तंत्र के लिये खतरा पैदा कर दिया है। जिसकी वजह से जंगल की जैवविविधता के लिये खतरे बढ़ गए है। पिछले सात-आठ वर्षो में ये एक चक्र बन गया है जिसमें जलवायु परिवर्तन के कारण गर्मी के मौसम में भीषण गर्मी, बारिश के मौसम में बारिश की अनियमितता, सर्दियों में कम बारिश और बर्फबारी. कम बारिश और बर्फबारी से गर्मी के मौसम की अवधि बढ़ जाती है जिससे वनों में आग लगने की घटनाओ में भी वृद्धि हुई है। और यह चक्र पिछले कुछ समय से चला आ रहा है,भीषण गर्मी, कम बारिश और फिर वनों में वनाग्नि.
इस वनाग्नि के कारण यहाँ के वनों के साथ साथ हिमालय का भी परिस्थितिक तंत्र गड़बड़ा जाता है और जलवायु पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
हिमालय के परिस्थितिक तंत्र का नकारत्मक ढंग से प्रभावित होना देश के लिए एक चिंताजनक स्थिति है.क्यों कि हिमालय का परिस्थितिक तंत्र समस्त भारत के लिए विशिष्ट स्थान रखता है और सम्पूर्ण देश की जलवायु को व्यापक रूप से प्रभावित भी करता है.गौरतलब है की 2011से 2020 का दशक अब तक का सबसे अधिक गर्म दशक रहा है।

एक अक्तूबर से लेकर दो अप्रैल तक ही जंगल की आग के 964 मामले सामने आ चुके हैं। करीब 1263 हेक्टेयर जंगल इससे प्रभावित हुआ है.इस आग ने पिछले सभी रिकॉर्ड तोड़ दिये हैं। इसके पहले उत्तराखण्ड के ही जंगलों में 2009और2016 में भीषण आग लगी थी। वहीं 2019 में 30,000 छोटे बड़े आग लगने के मामले सामने आये थे। फिलहाल आग का एक प्रमुख कारण हाल के वर्षों में रिकॉर्ड उच्च तापमान और शुष्क सर्दियों के कारण वर्षा की गंभीर कमी को माना गया है। उत्तराखंड में हर साल फरवरी के मध्य, वसंत की शुरुआत से जंगल की आग शुरू होती है, जब पेड़ सूखी पत्तियों को गिरा देते हैं और तापमान में वृद्धि के कारण मिट्टी नमी खो देती है। यह ‘अग्नि काल’ गर्मियों में मध्य जून तक आमतौर पर जारी रहता है।

वनाग्नि के कारण:
उत्तराखंड में वनाग्नि प्रमुख कारणों में अत्यधिक गर्मी के साथ साथ चीड़ के पेड़ों की अधिकता को एक कारण बताया गया है। इसके साथ ही सूखी घास और सूखे वृझों का उचित प्रबंधन न करना आदि हो सकते है। कई बार जंगल में आग की घटना प्राकृतिक कारणों से जैसे बिजली गिरने आदि से उत्पन्न होती है जिससे पेड़ों में आग लग जाती है। भारतीय वन सर्वेझण की रिपोर्ट के अनुसार भारत के वनों में 95% आग का कारण मैन मेड है,जिसमें पिछले कुछ वर्षो में 150% की वृद्धि के साथ वनों में आग लगने का दायरा भी बड़ा है।

ग्लोबल वार्मिंग के परिणामस्वरूप वर्ष 2020 में विश्व के आदिकांश भागों में वनाग्नि की घटनाओं में बढ़ोतरी देखने को मिली है। धरती के फेफड़े कहे जाने वाले अमेजोन के जंगलों में केवल 2019 में 76000 वनाग्नि के मामले सामने आये है जिसमें कार्बन डाईऑक्साइड सोकने वाले 1345 वर्ग किलोमीटर का वन झेत्र कम हो गया है। अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया ने भी भयंकर वनाग्नि का सामना किया जिसमें उन्हें वन सम्पदा के साथ भारी मात्रा में जान और माल की हानि उठानी पड़ी। भारत में भी केवल उत्तराखंड ही नही मैदानी झेत्रों के वनों में भी वनाग्नि की घटनाये बड़ी हैं अभी हाल में ही मध्य प्रदेश में बाघों के घर कहे जाने वाले बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान में कई दिनों तक लगी रही आग से छह रेंज में भारी नुकसान हुआ है. पश्चिम घाट के वनों में भी वनाग्नि हमेशा समस्या बनी रहती है।

वनाग्नि नियंत्रण हेतु उपाय:
वनाग्नि आमतौर पर मौसमी होती है, यह मुख्यत:शुष्क मौसम में ही अधिक घटित होती जिसे पर्याप्त सावधानीयों द्वारा रोका जा सकता है जैसे – मौसम संबंधी आंकड़ों का उपयोग करते हुए आग प्रवण दिनों का पूर्वानुमान, शुष्क जैव भार तथा जंगल की सतह पर गिरे हर शुष्क अपशिष्ट का शीघ्र निपटान एवं प्रबंधन करके,वनों में फायर लाइन का निर्माण करके, स्थानीय निवासियों को वनाग्नि से निपटने का पर्याप्त प्रशिक्षण प्रदान करके तथा फायर वाचर्स की संख्या में वृद्धि करके वनाग्नि की घटनाओं को रोका जा सकता है, गौरतलब है की उत्तराखंड के विशाल पहाड़ी झेत्र में आग बुझाने मात्र 12000 फायर वाचर्स लगाए गए है.साथ ही वनाग्नि से निपटने के लिए सरकारों को भी सतर्क और सजग रहने की आवश्यकता है।

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