संगीत शिक्षायतन ने योग दिवस और अन्तर्राष्ट्रीय संगीत दिवस पर किया भाव आयोजन

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पटना, 22 जून 2021:: कला एवं संस्कृति के संरक्षण , संवर्धन में समर्पित संस्था संगीत शिक्षायतन ने सातवें विश्व योग दिवस और अन्तर्राष्ट्रीय संगीत दिवस को बड़े ही उत्साह से व्याख्यान सह प्रदर्शन विधि और विभिन्न प्रकार के गायन शैलियों की प्रस्तुति देकर मनाया। 

व्याख्यान सह प्रदर्शन विधि का विषय योग: लव – लाइफ – लिविंग था। उक्त विषय पर आमंत्रित चार अतिथि विशेषज्ञों ने अपनी व्याख्या विस्तार पूर्वक दी।

दीप प्रज्वलन के लिए सभी उपस्थित कलाकार सहित विशिष्ट अतिथि अध्यक्षा रेखा शर्मा व कथक नृत्यांगना यामिनी ने दीप को प्रज्वलित किया। 

साथ ही कार्यक्रम की शुरुवात मंत्र उच्चारण व स्वर साधना से हुई। जिसका पाठ आदित्य कौशिक ने शंख नाद के साथ सस्वर – ओम, दीपम ज्योति, गणेश स्तुति, देवाहन स्त्रोत, पुषपांजलि, शांति श्लोक से दिव्य शुरुवात किया।

उसके बाद व्याख्यान में सबसे पहले हृदय नारायण झा ( योगा गुरु, राजकीय आयुर्वेदिक कॉलेज एवं अस्पताल, पटना ) ने लव लाइफ लीविंग को स्पष्ट करते हुए कहा – हर एक की चाहत होती है स्वस्थ एवं सुखमय प्रेम, जीवन और जीवन शैली -लव, लाइफ, लीविंग।  इसकी प्राप्ति के के लिए अपेक्षित फिजिकल, मेन्टल एंड इमोशनल फिटनेस जरूरी है।

लाइफ और लीविंग की बुनियाद प्रेम पर आश्रित होता है। प्रेम में आस्था और विश्वास का होना जरूरी है। आस्था और विश्वास के लिए सभी प्रकार के शारीरिक,  वाचिक और मानसिक हिंसा, झूठ, छल, प्रपंच, नशा, व्यभिचार से मुक्त पवित्र, संतोषी, परिश्रमी, स्वाध्यायी और आस्तिक भाव से युक्त जीवन का होना जरूरी है।

इस प्रकार से प्राप्त आस्था और विश्वास के साथ जो प्रेम होता है, उससे जीवन तनाव रहित, रोग रहित, आनंदप्रद होता है और यही स्वस्थ जीवन शैली होती है। जिससे दीर्घायु एवं सतत अभ्युदय की प्राप्ति होती है।

जहाँ इस प्रकार से प्राप्त आस्था और विश्वास का अभाव होता है  वहाँ जो प्रेम संबंध होता उसमें आस्था और विश्वास का दिखावा प्रबल होता है। इसीलिए परस्पर सम्बन्ध में संशय, अविश्वास, छल, प्रपंच, हिंसा, विश्वासघात जैसी विकृतियों की संभावना बनी रहती है।

शरीरमाद्यं खलुधर्मसाधनम के अनुसार सभी धर्मों का आदि साधन शरीर है। इसलिए शरीर का साधन पहले जरूरी है। साधन के लिए शरीर से प्रेम होना आवश्यक है।

यम नियम पूर्वक आसन- प्राणायाम-प्रत्याहार-धारणा, ध्यान, समाधि का अभ्यास करने से मनोनुकूल शरीर, मन, वचन, भाव,कर्म कुशलता और लक्ष्य की प्राप्ति होती है।

पद्मासन, रेचक, पूरक, नाड़ी शोधन प्राणायाम एवं ध्यान का अभ्यास बताया और कहा कि यम नियम पूर्वक आसन प्राणायाम के अभ्यास से हेल्दी और हैप्पी लव लाइफ और लीविंग प्राप्त किया जा सकता है।

व्याख्यान के बीच में 

म्यूस म्यूजिकल ग्रुप द्वारा “स्वरा कार्यक्रम” में एक से एक गीतों को कलाकारों ने गया। गायन की विभिन्न शैलियों में भजन – “सूरज की गर्मी से…” पावस ऋतु के स्वागत में राग सोहनी, बाहर, जौनपुरी और यमन पर आधारित  “कुहू कुहू बोले कोयलिया…” गीत से सभी का मन मोह लिया। साथ ही सागरिका ने “सुनो सजना पहिने कहा पुकार कर”… गाने को अपनी मधुर आवाज़ से सजाया और राघव ने गीत “आज से तेरी ….” पर एकल तबला बजाया। 

म्यूस म्यूजिकल ग्रुप के संगीत व संगत कलाकार में अमित, अंबिका, अनन्या, सुप्रिया, सागरिका, राघव और तबले पर श्री प्रवीर कुमार उपस्थित थे।

रवि प्रकाश (कथक नर्तक व योग साधक, बेतिया) ने नर्तक होने के कारण अपने निजी अनुभवी को योग के साथ जोड़ते हुए कहा – योग  क्या नहीं है?

तो योग घटाव नहीं है | योग के इन तथ्यों से पहले अगर हम किसी भी मनुष्य के व्यक्तित्व की बात करें तो उसे अपने विकारों को सूक्ष्मता से समझकर निरंतर उसे हराने की चेष्टा करते रहनी चाहिए, क्योंकि मैं भी सर्वप्रथम एक अच्छा कलाकार बनने से पहले स्वयं में एक अच्छे व्यक्तित्व का निर्माण करना चाहता हूं, जिसका भरपूर ज्ञान और मार्ग मुझे योग और अध्यात्म से निरंतर प्राप्त हो रहा है। मैं जितना ही उसके ज्ञान की गहराई में जा रहा हूं, उतना ही बेहतर बनते जा रहा हूँ|

योग से किसी भी रुप में जुड़ने पर चाहे वह शारीरिक हो या मानसिक किसी भी रुप में योग आपको बेहतर ही बनाएगा। यानी इससे आपको कुछ भी नुकसान नहीं होने वाला है। सूक्ष्म रूप से अगर हम योग की शिक्षा-दीक्षा लेते हैं तो महर्षि पतंजलि के अनुसार योग के आठ चरण यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि इनका अध्ययन करते हैं, जिसमें सभी चरण महत्वपूर्ण होते हैं। हर एक चरण को समझकर, उसे अपनाकर ही हम अपने जीवन में इसका पूर्ण लाभ उठा सकते हैं और आनंद की उत्कृष्टता तक पहुँच सकते हैं|

अब अगर हम एक नर्तक के दैनिक जीवन पर ध्यान दें, तो उन्हें शारीरिक रूप से अधिक कठिन कार्य करने होते हैं जो कई बार हमारे शरीर पर बुरा प्रभाव भी डालते हैं जैसे कई नर्तक में सर्वाइकल, स्पाइन से जुड़े प्रॉब्लमस और घुटने में दर्द आम बात हो जाती है। इन्हीं सब बीमारियों से बचाव और अपने शरीर में सामंजस्य स्थापित करने के लिए योग महत्वपूर्ण स्थान रखता है। 

यह तो हो गई शरीर की बात अब अगर मन की बात करें तो किसी भी शास्त्रीय नृत्य में जब हम अभिनय करते हैं तो हमें कई किरदार जैसे कृष्ण, राधा, शंकर, राम अलग-अलग प्रकार के रस जिसे शास्त्रीयता के साथ करना होता है, उन किरदार के आचरण या रसों के प्रभाव को समझना पड़ता है जिसमें योग अवश्य ही हमारी सहायता करता है| इतनी सूक्ष्मता से कुछ सीखना या समझना योग के द्वारा आसान हो जाता है।

अवधेश झा (योग गुरु व समन्वयक, ज्योतिर्मय योग ट्रस्ट, मियामी, यू.एस.ए.) योगाचार्य ने ध्यान और भक्ति योग 

कहा शरीर में मूल रूप से 7 चक्र होते हैं. इन्हें सृष्टि की समस्त शक्तियों का केंद्र माना जाता है. इन चक्रों के स्थान और उसके जागृत कर मनोवैज्ञानिक रूप से पाए जाने वाले  नियंत्रणों को विस्तार से बताया। जैसे – मूलाधारचक्र, स्वाधिष्ठानचक्र, मणिपुरचक्र, अनाहत,चक्र, विशुद्धचक्र, आज्ञाचक्र, सहस्त्रार चक्र ये सातों चक्र शरीर में क्रम से

रीढ़ की हड्डी के सबसे निचले हिस्से के पास होता है।

जनन अंग के ठीक पीछे रीढ़ की हड्डी पर स्थित,नाभि के ठीक पीछे रीढ़ की हड्डी पर , ह्रदय के बीचों बीच, कंठ के ठीक पीछे, दोनों भौंहों के बीच, मष्तिष्क के सबसे उपरी हिस्से पर अवस्थित होते है।

इन चक्र को कुलकुण्डलिनी आध्यात्मिक रूप से धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का नियंत्रण करता है.

वहीं स्वाधिष्ठान चक्र से अवहेलना,सामान्य बुद्धि का अभाव, आग्रह, अविश्वास, सर्वनाश और क्रूरता।

मणिपुर चक्र  चक्र ऊर्जा का सबसे बड़ा केंद्र है , यहीं से सारे शरीर में ऊर्जा का संचरण होता है.।इस चक्र से निम्न वृत्तियाँ नियंत्रित होती हैं – लज्जा, दुष्ट भाव, ईर्ष्या, सुषुप्ति, विषाद, कषाय, तृष्णा, मोह, घृणा, भय

विशुद्ध चक्र सारी की सारी सिद्धियाँ इसी चक्र में पायी जाती हैं.कुंडली शक्ति का जागरण होने से जो ध्वनि आती है वह इसी चक्र से आती है। संगीत के सातों सुर इसी चक्र का खेल हैं। आज्ञा चक्र इस चक्र पर मंत्र का आघात करने से शरीर के सारे चक्र नियंत्रित होते हैं। इसी चक्र पर इडा,पिंगला और सुषुम्ना आकार खुल जाती हैं और मन मुक्त अवस्था में पंहुँच जाता है। सहस्त्रार चक्र मष्तिष्क के सबसे उपरी हिस्से पर जो चक्र स्थित होता है , उसे सहस्त्रार कहा जाता है।  इस चक्र का न तो कोई धयान मंत्र है और न ही कोई बीज मंत्र , इस चक्र पर केवल गुरु का ध्यान किया जाता है.

इस प्रकार से कुण्डलिनी जागरण शक्ति से  जब इस चक्र पर पहुँचती है तब जाकर वह साधना की पूर्णता पाती है और मुक्ति की अवस्था में आ जाती है. इस स्थान पर सदगुरु का ध्यान या कीर्तन करने से व्यक्ति के मुक्ति मोक्ष का मार्ग सहज हो जाता है। 

अंत में रितेश मिश्रा (योगाचार्य, संस्थापक, योग ध्यान मंत्र साधना कुटीर, मुंगेर।) ने योग की मूल बातो के साथ उसके करने की विधि को विस्तार से क्रियात्मक जानकारी प्रस्तुत किया। इसमें उनके साथ दो शिष्य अनु तिवारी और विकास कुमार आसनों को करके दिखाकर स्पष्ट कर रहे थे।

योगाभ्यास की शुरुवात :- शांति पाठ से हुई। और

1. पादांगुली नमन 2. गुल्फ नमन 3.गुल्फ चक्र      4. गुल्फ घूर्णन 5. तितिली आसन 6.मणिबन्ध चक्र

7. केहुनी नमन, 8. स्कंध चक्र 9. ग्रिवा संचालन

10. झूलना लुढ़कना आसन 11.नौकासन

12. ताड़ासन, तिर्यक ताड़ासन, कटिचक्रासन,

13.सूर्य नमस्कार (संस्कृत के बारहों) नाम के साथ!

14. धनुरासन, हलासन, सर्वांग आसन!

नाड़ी शोधन प्राणायाम, भ्रामरी प्राणायाम

.15.शवासन और अंत में पुनः शांति पाठ से समापन!किया।

संस्था की चीफ ट्रस्टी यामिनी ने धन्यवाद ज्ञापन के साथ सभी को एक एक पौधा भेट किया।

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