वसंत पंचमी, देवी सरस्वती और देवी लक्ष्मी का प्राकट्य दिवस है

Yoga & Spirituality

  • जितेन्द्र कुमार सिन्हा

सनातन धर्म के अनुयायी वसंत पंचमी पर माँ सरस्वती का पूजा माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को करते है। क्योंकि समस्त ऋतुओं के राजा ऋतुराज वसंत के आगमन की आहट बसंत पंचमी के दिन से होने लगती है और वसंत पंचमी को देवी सरस्वती एवं देवी लक्ष्मी का प्राकट्य दिवस माना जाता है। वसंत पंचमी देवी सरस्वती के प्राकृतिक सुंदरता का पर्व है।

देवी सरस्वती के श्वेत धवल रूप का वर्णन, वेद-पुराणों में वर्णित है “जो कुंदा के फूल, चंद्र हिम तुषार, या मोतियों के हार के समान गौर वर्ण हैं, जिन्होंने शुभ्र वस्त्र धारण किए हैं, जिन के हाथ में उत्तम वीणा सुशोभित है, जो शुभ्र कमल के आसन पर विराजमान हैं। रूप मंडन में वाग्देवी का शांत, सौम्य, एवं शास्त्रोक्त है। देवी के रूपों में दूध के समान शुभ्र रंग विराजमान है। जिनकी निरंतर स्तुति ब्रह्मा, विष्णु, महेश आदि देवताओं करते हैं, जो सभी प्रकार की जड़ता अर्थात अज्ञानता दूर करती हैं, ऐसी भगवती माता सरस्वती मेरी रक्षा करें।

“या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणा वर दंड मंडित करा या श्वेत पद्मासना।

या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेष जाड्यापहा।।”

सूर्य को ब्रह्मांड की आत्मा, पद, प्रतिष्ठा, भौतिक समृद्धि, औषधि, बुद्धि एवं ज्ञान का कारक ग्रह माना जाता है। इसी तरह पंचमी तिथि किसी न किसी देवता को समर्पित है। “वसंत पंचमी” देवी सरस्वती को समर्पित है। ज्योतिष शास्त्र की दृष्टि से इस ऋतु में, प्रकृति को ईश्वर का वरदान प्राप्त है कि इस समय प्राकृतिक हरियाली, वृक्षों पर नव पल्लव, पुष्प, फल का शुभारंभ होने लगता है।

मत्स्य पुराण के अनुसार, ब्रह्मा ने विश्व की रचना करने के समय अपने ह्रदय में सावित्री का ध्यान कर तप किया था, उस समय उनका शरीर आधा भाग स्त्री का और आधा भाग पुरुष का, दो भागों में विभक्त हुआ था, वह देवी सरस्वती एवं शतरूपा के नाम से प्रसिद्ध हुई।

सभी प्रकार के शुभ कार्यों के लिए वसंत पंचमी के दिन को अत्यंत शुभ मुहूर्त माना जाता है। विद्यारंभ संस्कार करने के लिए और गृह प्रवेश करने के लिए वसंत पंचमी के दिन को पुराणों में भी अति श्रेयस्कर (अति शुभ), सर्वोत्कृष्ट मुहूर्त एवं दिन माना गया है। शास्त्रों में भगवती सरस्वती की आराधना व्यक्तिगत रूप से करने का विधान है।

ऋग्वेद के (10/125) इस सूक्त में देवी सरस्वती के असीम प्रभाव और महिमा का वर्णन किया गया है। विद्या एवं ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती का वास, जिनकी जिह्वा पर होता है, वे अतिशय विद्वान एवं कुशाग्र बुद्धि के होते हैं। ब्राह्मण ग्रंथ के अनुसार, वाग्देवी सरस्वती ब्रह्म स्वरूपा, कामधेनु एवं समस्त देवताओं की प्रतिनिधित्व करती हैं। वहीं देवी सरस्वती विद्या, बुद्धि एवं ज्ञान की देवी हैं।

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