- डॉ शिवाजी कुमार, पूर्व राज्य आयुक्त, बिहार
पटना/दिल्ली : 1 अप्रैल 2023 :: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 10वें अंतर्राष्ट्रीय एबिलिम्पिक्स के भारतीय दल से मुलाकात की, जो अलग- अलग विकलांग व्यक्तियों के लिए वैश्विक कौशल प्रतियोगिता है। राष्ट्रपति ने उन्हें पदक जीतने और देश को गौरवान्वित करने के लिए बधाई दी। उन्होंने कहा कि उनकी सफलता दिव्यांगजनों को प्रेरित करेगी।
एबिलिम्पिक:
2 अप्रैल को विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस मनाया जाता है। यह बीमारी इस समय में बहुत ही तेज़ी से बढ़ती है। जागरूकता एवं बचाव ही इसका ईलाज है। ज़्यादा से ज्यादा जन- जागरूकता कर इसकी रोकथाम कर सकते हैं।
हर साल 2 अप्रैल को विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस मनाया जाता है। अगर आप ऑटिज्म शब्द को लेकर उलझन में हैं, तो यहां आपको बता दें कि ये एक तरह की बीमारी होती है। इसमें बच्चे के दिमाग का ठीक तरह से विकास नहीं हो पाता। ऐसे में हर साल 2 अप्रैल के दिन ऐसे बच्चों का जीवन बेहतर करने के लिए और उनमें सुधार लाने के लिए कई कदम उठाए जाते हैं। इसलिए हर साल इस दिन विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस मनाया जाता है।
तो चलिए 2 अप्रैल को विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस इस दिन के बारे में और भी बहुत कुछ जानते हैं:
साल 2007 में 2 अप्रैल के दिन संयुक्त राष्ट्र महासभा ने विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस मनाने की घोषणा की थी। संयुक्त राष्ट्र महासभा के सदस्य इस दिन लोगों में इस बीमारी की जागरूकता को लेकर काम करते हैं और लोगों को प्रोत्साहित करते हैं। साथ ही लोगों को सार्थक जीवन बिताने के लिए सहायता देता है।
इस बीमारी के कई लक्षण भी हैं। जैसे- बच्चे जल्दी से दूसरे लोगों से आई कॉन्टेक्ट नहीं कर पाते हैं, किसी की आवाज सुनने के बाद भी वो कोई जवाब नहीं देते हैं, भाषा को सीखने-समझने में दिक्कत आती है, अपनी ही धुन में मग्न रहते हैं, सामान्य बच्चों से अलग दिखते हैं आदि इसके लक्षण हैं।
अगर आप चाहते हैं कि आपका बच्चा इस बीमारी का शिकार न हो, तो इसके लिए गर्भवती महिला को नियमित रूप से अपना मेडिकल चेकअप करवाना चाहिए और दवाए लेनी चाहिए। धूम्रपान, शराब जैसी चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए, अच्छा खानपान करना चाहिए आदि।
जैसा कि हमने आपको बताया कि ऑटिज्म एक तरह की बीमारी होती है। वहीं, ऑटिज्म का प्रतीक नीले रंग को माना जाता है। इसलिए हर साल इस दिन प्रमुख ऐतिहासिक इमारतों को नीले रंगी की रोशनी से सजाया जाता है।
आटिज्म से बच्चों को बचाना है तो मोबाइल व सोशल प्लेटफार्म से रखें दूर, शारीरिक गतिविधियों को करें प्रेरित
मोबाइल गैजेट्स व टीवी बच्चों के भविष्य को खराब कर रहा है। इससे आटिज्म की बीमारी बढ़ रही है। ये बच्चे के सोशल कम्यूनिकेशन और बिहैवियर स्किल्स को कई तरह से प्रभावित करता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार विश्व में 160 बच्चों में से एक को आटिज्म होता है।
पर्यावरणीय और जेनेटिक कारणों के मेल से होता है ऐसा
ऑटिज्मस का कोई एक कारण नहीं है । ऐसा माना जाता है कि पर्यावरणीय और जेनेटिक कारणों के मेल से ऐसा होता है। अक्सर दो या तीन साल की उम्र से बच्चे में ऑटिज्मस के संकेत मिलने शुरू हो जाते हैं। ऑटिज्म का कोई इलाज नहीं है लेकिन इस स्थिति को सुधारने के लिए कई प्रभावशाली तरीके मौजूद हैं।
अमेरिकन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स के अनुसार एक साल के होने से पहले ही बच्चेे में ऑटिज्मस के संकेत मिलने शुरू हो सकते हैं। ज्यादा साफ संकेत दो या तीन साल की उम्र से पहले ही दिखने लग जाते हैं। ऑटिज्म तीन चीजों को प्रभावित करता है – सोशल स्किल्स, कम्यूनिकेशन स्किल्स और बिहेवियर स्किल्स। ऑटिज्म से ग्रस्त तीन साल के बच्चे में सोशल स्किल्स की कमी देखी जाती है। इसमें बच्चा अपना नाम सुनकर प्रतिक्रिया नहीं देता, आंखों में आंखें डालकर बात नहीं करता, अपनी चीजों को दूसरों से शेयर नहीं करता, अकेले खेलता है, उसे दूसरों से बात करना पसंद नहीं है, फिजीकल कॉन्टैक्ट से बचता है, चेहरे पर अजीबो -गरीब हाव -भाव होना और अपनी भावनाओं को व्यक्त नहीं कर पाता है।
तीन साल के बच्चे में लैंग्वेज और कम्यूनिकेशन स्किल्स में ऑटिज्म के निम्न संकेत दिखाई दे सकते हैं
किसी शब्दी या वाक्य को दोहराना
• सवालों के गलत जवाब देना।
• दूसरों की बात को दोहराना
• पसंद की चीजों को प्वााइंट ना करना
• गुड बाय कहना या हाथ हिलाने जैसी कोई प्रतिक्रिया ना देना
• मजाक ना समझ पाना
ऑटिज्मा से ग्रस्त होने पर तीन साल के बच्चे में निम्न संकेत मिल सकते हैं :
• खिलौनों और चीजों को काफी संभालकर रखना।
• रोजमर्रा की जिंदगी में छोटा-सा बदलाव करने पर भी दुखी हो जाना।
• बार-बार एक ही काम करना।
• किसी एक ही चीज या खिलौने से खेलना।
• गुस्सा दिखाना।
• खुद को नुकसान पहुंचाना।
• बहुत ज्यादा नखरे दिखाना।
• कुछ परिस्थितियों में डर ना लगना।
• समय पर ना सोना और ना खाने का सही समय होना।
क्या है वर्चुअल ऑटिज्म
वर्चुअल ऑटिज्म मुख्य तौर पर 4 से 5 साल तक की उम्र के बच्चों में दिखता है। ऐसा अक्सर उनके मोबाइल फोन, पीसी या फिर कंप्यूटर जैसे इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स की लत के कारण होता है। स्मार्टफोन का ज्यादा से ज्यादा प्रयोग, लैपटॉप और टीवी पर ज्यादा से ज्यादा पिक्चर देखना जैसी समस्याओं के कारण बच्चों को बोलने में दिक्कत और समाज में दूसरे लोगों के साथ बातचीत करने में परेशानी महसूस होने लगती है।
बच्चों के याददाश्त पर पड़ता है असर
मोबाइल फोन, टीवी पर कार्टून, किड्स शोस और दूसरे प्रोग्राम देखने से बच्चों की याददाश्त पर प्रभाव पड़ता है। और तो और जो बच्चे टीवी पर देखते हैं उसे ही दोहराते हैं बिना जाने कि उसका मतलब क्या है यह उनके मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। इसलिए परिजनों को अपने बच्चों से कहना चाहिए कि वह ज्यादा से ज्यादा शारीरिक गतिविधियों में शामिल हो और दिन में कम से कम 45 मिनट ही मोबाइल चलाएं।