नीरज चोपड़ा: उगते सूरज के देश में खिला स्वर्णिम कमल

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  • दिलीप कुमार

जापान उगते सूरज का देश है। ओलंपिक खेलों की एथलेटिक्स स्पर्धा में 125 वर्षों की लंबी प्रतीक्षा के बाद वहां भारत के लिए स्वर्णिम कमल खिला। 23 वर्षीय नीरज चोपड़ा ने 87.58 मीटर दूर भाला फेंक कर ओलंपिक का चमचमाता हुआ स्वर्ण पदक भारत की झोली में डाल दिया। इस पदक से 125 करोड़ लोगों की आंखों में स्वर्णिम आभा आ गई। सदियों का इंतजार समाप्त हुआ। मिल्खा सिंह, पीटी उषा और दीपा करमाकर जैसे एथलीट अत्यंत सूक्ष्म अंतर से ओलंपिक पदक जीतते-जीतते रह गए थे। अपनी स्वर्णिम सफलता से नीरज चोपड़ा ने उन सब की पीड़ा को खत्म कर दिया। बड़े ही उदार मन से भारत के सभी खेल प्रेमियों के भाल को ऊंचा करते हुए उन्होंने अपना स्वर्ण पदक उड़न सिख मिल्खा सिंह को समर्पित कर दिया। इस समर्पण में खेल के प्रति समर्पित एक चैंपियन खिलाड़ी की सर्वोच्च खेल भावना दिखी। मिल्खा सिंह अब इस दुनिया में नहीं हैं। अपना मेडल उन्हें समर्पित करते हुए नीरज चोपड़ा ने बड़े ही सम्मान के साथ कहा- मुझे आशा है कि वह ऊपर से हमें देख रहे हैं और अति प्रसन्न है कि उनका स्वप्न साकार हुआ।
नीरज चोपड़ा ने जिस प्रकार की सफलता हासिल की है, वैसी सफलता पाकर लोग सातवें आसमान पर पहुंच जाते हैं। लेकिन, नीरज ने अपने पैरों को जमीन पर टिकाए रखा है। महान खिलाड़ी होने के साथ-साथ वह एक महान व्यक्ति के रूप में भी देश के लिए आदर्श बन गए हैं। उनके पास सफल होने का बड़ा मंत्र है-
जब सफलता की ख़्वाहिश आपको सोने ना दे
जब मेहनत के अलावा और कुछ अच्छा ना लगे
जब लगातार काम करने के बाद थकावट ना हो
समझ लेना सफलता का नया इतिहास रचने वाला है।
पिछले 3 सालों से नीरज चोपड़ा ओलंपिक मेडल के लिए इसी तरह से प्रयास कर रहे थे। बिना रुके, बिना थके। चरैवेति!चरैवेति!! अंततः टोक्यो ओलंपिक में कड़ी मेहनत और कुशल प्रशिक्षण का रंग दिखा- स्वर्णिम।
नीरज चोपड़ा ओलंपिक की व्यक्तिगत स्पर्धाओं में स्वर्ण पदक जीतने वाले भारत के दूसरे खिलाड़ी हैं। उनसे पहले 2008 के बीजिंग ओलंपिक की 10 मीटर राइफल शूटिंग स्पर्धा में जसपाल राणा ने स्वर्ण पदक पर निशाना साधा था। भारत को शेष आठ स्वर्ण पदक हॉकी में मिले हैं। नीरज की स्वर्णिम सफलता के साथ ही ओलंपिक खेलों में भारत के स्वर्ण पदकों की संख्या दोहरे अंकों में पहुंच गई है।

टोक्यो ओलंपिक से पहले नीरज की शानदार तैयारी को देखते हुए उनसे जीतने की उम्मीद लगाई जा रही थी। प्रतिद्वंद्वी खिलाड़ी उनसे भयभीत भी थे। माइंड गेम भी खूब खेला गया। जर्मनी के विश्व चैंपियन जोहानस वेटर ने तो उन्हें सीधा चैलेंज कर दिया था- तुम कितना भी प्रयास कर लो मेरे आगे टिक नहीं सकोगे। अंतरराष्ट्रीय स्तर की 17 जैवलिन थ्रो प्रतियोगिताओं में स्वर्ण पदक जीतने वाले जोहानस वेटर के चैलेंज को नीरज चोपड़ा ने सहजता से लिया। उन्होंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। वह उत्तेजित नहीं हुए। लक्ष्य के प्रति समर्पित होकर अपनी तैयारी को बेहतर करते रहे और अंततः अपने भाले को ही जवाब देने के लिए आगे किया। क्वालीफाइंग राउंड में अव्वल रहते हुए नीरज चोपड़ा ने जोहानस वेटर को दूसरे स्थान पर धकेला। इससे जोहानस वेटर के अहम को धक्का लगा और फाइनल में वह अतिरिक्त दबाव में आ गए। प्रथम तीन प्रयासों में खराब प्रदर्शन करने के कारण वह नौवें स्थान पर रहे और प्रतियोगिता से बाहर हो गए। दूसरी और आत्मविश्वास से लबरेज नीरज चोपड़ा ने स्वयं के मुकाबले में स्वयं को ही खड़ा किया। पहले प्रयास में 87.03 मीटर भाला फेंक कर बहुत बनाने वाले नीरज चोपड़ा ने दूसरे प्रयास में 87.58 मीटर की दूरी तक भाला फेंका। इस तरह पहला और दूसरा दोनों स्थान नीरज चोपड़ा को जाता। नियमानुसार एक खिलाड़ी को दो पदक नहीं मिल सकते। इसलिए तीसरा सबसे बेहतरीन प्रदर्शन करने वाले चेक गणराज्य के जाकूब वादलेच को 86.67 मीटर भाला फेंकने के लिए रजत पदक और उन्हीं के देश के वितेजस्लाव वेस्ली को 85.44 मीटर दूर तक जैवलिन थ्रो करने के लिए कांस्य पदक मिला।
नीरज चोपड़ा की स्वर्णिम कहानी में कई पड़ाव हैं। बचपन में खूब खाने और स्वास्थ्य पर ध्यान न देने के कारण वह मोटे हो गए थे। घर वालों ने दबाव डाला तो स्वास्थ्य लाभ के लिए स्टेडियम की ओर भागे। वहां अभ्यास करने वाले खिलाड़ियों से प्रेरित हो कभी दौड़ में हिस्सा लिया तो कभी कुश्ती के दांवपेंच आजमाए। उन्हें ये सब रास नहीं आया। एक दिन उन्होंने कुछ खिलाड़ियों को भाला फेंकते देखा। उन्होंने इस खेल में भी खुद को आजमाना चाहा। कई निवेदनों के बाद उन्हें भाला दिया गया। बिना किसी मूलभूत जानकारी के उन्होंने इतना दूर तक भाला फेंक दिया कि दूसरे खिलाड़ी देखते रह गए। खेल के मैदान में अपने लिए उचित खेल की नीरज चोपड़ा की तलाश पूरी हुई। वह भाला फेंकने की ट्रेनिंग ही लेने लगे।
सही खेल का चयन कर लेने के बाद भी उनकी राह आसान न रही। पुराने और कम स्टैंडर्ड वाले जैवलिन से वह अभ्यास करते। जैकलिन की खराब गुणवत्ता से उनका अभ्यास प्रभावित होता। जैकलिन ज्यादा दूर न जाता तो उनका उत्साह भी कम हो जाता। अंतरराष्ट्रीय मानक का जैवलिन उनके लिए जरूरी हो गया था। इसके लिए डेढ़ लाख रुपयों की दरकार थी। 19 लोगों के परिवार का भरण पोषण करने वाले पिता के लिए डेढ़ लाख एक बड़ी रकम थी। इतने पैसे हाथ में नहीं थे। मगर उन्होंने नीरज चोपड़ा को निराश नहीं होने दिया। पैसे उधार लिए और नए जैवलिन का प्रबंध किया। स्थानीय स्तर पर शानदार तरीके से नीरज चोपड़ा की ट्रेनिंग होने लगी।
अनुशासन, धैर्य और बेहतर तकनीक ने जल्द ही रंग दिखाना शुरू कर दिया। 2012 में नीरज चोपड़ा राज्य स्तरीय जूनियर जैवलिन थ्रो प्रतियोगिता के विजेता बने। उसी वर्ष वह जूनियर नेशनल चैंपियनशिप के विजेता भी रहे। जीत का सफर अभी चालू ही हुआ था कि वॉलीबॉल खेलते हुए कलाई में चोट लग गई। कुछ समय के लिए विजय रथ रुक गया। लेकिन, वह चोट पानीपत के खांदरा गांव में जन्मे नीरज का रास्ता लंबे समय तक न रोक सका। बेहतर प्रशिक्षण के लिए वह पानीपत से पंचकूला चले गए और फिर एक के बाद एक कई पदक जीतकर अपना भौकाल स्थापित कर लिया। यूक्रेन के वर्ल्ड यूथ चैंपियनशिप में उनकी भागीदारी रही। 2013 के बैंकॉक यूथ ओलंपिक में उन्होंने रजत पदक जीता। 2015 में यदि किसी बड़ी प्रतियोगिता में वह पदक जीतते, तो रियो ओलंपिक के लिए क्वालीफाई कर जाते। लेकिन, बड़ी कामयाबी उन्हें 2016 में मिली जब पोलैंड में आयोजित विश्व अंडर-20 जूनियर चैंपियनशिप में उन्होंने स्वर्ण पदक जीता। तब तक रियो ओलंपिक मैं क्वालीफाई करने का समय समाप्त हो चुका था। अवसर चुकने के बावजूद नीरज चोपड़ा ने मुड़कर नहीं देखा। 2016 के एशियाई जूनियर चैंपियनशिप में उन्होंने रजत पदक जीता। इसी साल आयोजित दक्षिण एशियाई खेलों में उन्होंने स्वर्ण पदक हासिल किया। 2017 में भुवनेश्वर एशियाई चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतते हुए वह अपना परचम लहराते रहे। 2018 में गोल्ड कोस्ट में आयोजित राष्ट्रमंडल खेल और जकार्ता में आयोजित एशियाई खेलों में भी उन्होंने स्वर्ण पदक जीता। जकार्ता एशियाड में 88.07 मीटर भाला फेंक कर उन्होंने नया भारतीय कीर्तिमान भी स्थापित किया।
अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में उनके शानदार प्रदर्शन को देखते हुए भारत सरकार और खेल प्राधिकरण ने उनकी जरूरतों और प्रशिक्षण का विशेष ख्याल रखा। प्रशिक्षण के लिए वह दक्षिण अफ्रीका और स्वीडन गए। उन्हें जर्मनी के डॉ. क्लॉज और 100 मीटर से अधिक दूरी तक भाला फेंकने वाले यूवे होन से प्रशिक्षित होने का मौका मिला। उससे पहले वह गैरी क्लेवर्ट और वर्नर डेनियल्स जैसे ट्रेनरों की निगरानी में अभ्यास कर चुके हैं।

नीरज चोपड़ा की शानदार सफलता से पूरा देश गदगद है। वह देश के नए रोल मॉडल बन गए हैं। 21वीं सदी में भारत के लिए नई पहचान स्थापित करने हेतु लगातार प्रयत्नशील युवाओं के रोल मॉडल। उनकी स्वर्णिम सफलता वर्षों तक याद की जाती रहेगी।

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