पटना: 18 अप्रैल 2025 :: विश्व विरासत दिवस के अवसर पर ऐतिहासिक कुम्हरार पार्क में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, पटना सर्कल द्वारा आयोजित समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में आईपीएस विकास वैभव आमंत्रित थे। उन्होंने कहा, पाटलिपुत्र के प्राचीन अवशेष मुझे अत्यंत प्रिय हैं और जब भी स्वयं को इनके मध्य पाता हूँ, तब यात्री मन उस पुरातन काल में स्वतः चला जाता है जब 80 मौर्यकालीन प्रस्तर स्तंभों पर आधारित भव्य सभागार से अखंड भारत के संपूर्ण साम्राज्य का संचालन होता रहा होगा । आज जब उद्यान में आयोजित प्रदर्शनी का अवलोकन कर रहा था तब प्राचीन दृश्यों को देखकर मन प्राचीन सभागार में उपस्थित उन यवन राजदूत मेगास्थनीज का स्मरण करने लगा जिन्होंने पाटलिपुत्र को तत्कालीन विश्व का ऐसा सर्वप्रमुख नगर बताया था जिसकी काष्ठयुक्त दीवारें अत्यंत सुदृढ़ थीं और जिसके चारों ओर निर्मित जलीय अवरोध के कारण प्रवेश एवं निकास अत्यंत नियंत्रित रहता था और नगर का प्रशासन सर्वश्रेष्ठ माना जाता था । मन कहने लगा कि उस काल में जब नगर में उद्यमिता अपने उत्कर्ष पर स्थापित थी और जब उसके प्रशासक अत्यंत दक्ष थे तब कौटिल्य के अर्थशास्त्र का दृश्य भी निश्चित ही अत्यंत जीवंत रहा होगा । मन कहने लगा कि उस काल में निश्चित ही नगरवासी भी स्वयं को अत्यंत गौरवान्वित अनुभव करते होंगे और भला क्यों न करते जब मगध के प्रभाव एवं सामर्थ्य के समक्ष विश्व विजय की अभिलाषा लिए वीर यवन योद्धा अल्क्षेन्द्र (अलेक्जेंडर) के नेतृत्व में भारत पहुंची यवन सेना को भी भयाक्रांत होकर लौटना पड़ा था और कालांतर में भूमि अपने ज्ञान, शौर्य एवं उद्यमिता के कारण समस्त विश्व को प्रेरित करने लगी थी । मन जब इन्हीं विचारों में संलग्न था, तब पूर्व अधीक्षण पुरातत्वविद डाॅ डी एन सिन्हा जी ऐतिहासिक पाटलिपुत्र का संक्षिप्त इतिहास सभी के समक्ष प्रस्तुत करने लगे और फिर क्या था, ऐसा प्रतीत होना लगा मानो एक ऐसी ऐतिहासिक सभा में विद्यमान हूँ जहाँ पाटलिपुत्र का प्राचीन गौरव उसके उज्जवल भविष्य हेतु आवाह्न कर रहा हो ।

अपने संबोधन में आईपीएस विकास वैभव, आईजी, बिहार ने सर्वप्रथम आमंत्रण हेतु अधीक्षण पुरातत्वविद डाॅ सुजीत नयन का आभार व्यक्त किया और Let’s Inspire Bihar के उद्देश्यों के प्रति उनके समर्थन तथा अभियान में साथ जुड़ने तथा उसे सशक्तता प्रदान करने हेतु उनका हृदय से अभिनंदन किया । उसके बाद उन्होंने कहा कि विश्व विरासत दिवस की शुभकामनाएं देते हुए सभी से आँखें बंद करके उसी काल में चलने को कहा जब उसी स्थल से, “अखंड भारत का साम्राज्य संचालित होता था और यह चिंतन करने को कहा कि यदि उस काल के किसी नागरिक से यह पूछा जाता कि 2300 वर्ष पश्चात उनका पाटलिपुत्र कैसा होगा तो निश्चित ही उनकी आशाएं उसे और प्रबल रूप में स्थापित पातीं और विश्व जगत में सर्वाधिक महत्वपूर्ण तो निश्चित ही बतातीं परंतु यह अत्यंत गहन चिंतन का विषय है कि कालांतर में क्यों कभी अग्रणी रहा पाटलिपुत्र पिछड़ता चला गया और वर्तमान में तो ऐसी स्थिति है कि अर्थशास्त्र की भूमि की अर्थव्यवस्था संपूर्ण राष्ट्र में प्रति व्यक्ति आय के अनुसार सर्वाधिक पिछड़ेपन से ग्रसित है।”
आगे श्री विभव ने कहा कि “मैं विरासतों में समाहित प्रेरणा के महत्व को समझाने हेतु बगहा और रोहतास में अपने कार्यकाल के अनुभवों को साझा किया और कहा कि असंभव माने जाने वाले परिवर्तनों को भी मैंने वहाँ संभव होते हुए तब देखा था जब आमजन विरासत के संदेशों से प्रेरित होकर आगे बढ़ने लगे । बिहार के समृद्ध विरासत में समाहित प्रेरणा के प्रसार के लिए ही 4 वर्षों से अभियान के माध्यम से उन्हीं यशस्वी पूर्वजों के वंशजों को एक सूत्र में जोड़ने हेतु प्रयासरत हूँ, जिन्होंने न केवल अखंड भारत के साम्राज्य का निर्माण किया था परंतु नालंदा और विक्रमशिला में ऐसे विश्वविद्यालयों को भी तब स्थापित किया था जब यूरोप में आक्सफोर्ड और कैम्ब्रिज की कल्पना तक नहीं हुई थी । हमारे पूर्वजों की दृष्टि बृहत थी और वेदांत में समाहित एकात्म भाव से निश्चित ही प्रेरित थी, तभी तो हम पाते हैं कि जातियाँ उस प्राचीन काल में भी थीं परंतु ऐसा संघर्षपूर्ण जातिवाद नहीं था”।