दिल्ली : मैहर सेनिया परंपरा ने संगीत जगत को कई विशिष्ठ महिला कलाकार दिए हैं। विदुषी अन्नपूर्णा देवी और आदरणीया शरणरानी बाकलीवाल से लेकर शीला मुखर्जी, शिप्रा बैनर्जी इत्यादि कई महिलाएँ मैहर तंत्र वादन शैली को समृद्ध करती रही हैं। इसी कडी में हैं डा रीता दास, बिहार की पहली और एकमात्र महिला सरोद कलाकार जिन्होंने मई 17, 2025 को दिल्ली में अपना सरोद वादन प्रस्तुत किया।
बिहार के मिथिला की बेटी डॉ रीता दास एक ऐसे परिवार से हैं जो साहित्यिक और सागंगीतिक रूप से बहुत संपन्न रहा है। इनके पिता, प्रो सी एल दास पद्मभूषण आचार्य अलाउद्दीन खाँ के शिष्य थे और पटना स्थित एक कौलेज में अंग्रेजी भाषख और साहित्य के विभागाध्यक्ष होने के साथ ही कला समीक्षक भी रहे और दशकों तक आकाशवाणी पटना के शास्त्रीय संगीत औडीशन बोर्ड के ज्यूरी मेंबर रहे थे और डॉ रीता की माँ, स्वर्गीय सावित्री देवी आकाशवाणी पटना के मैथिली नाटक विभाग की पहली मैथिली भाषी महिला थीं और मिथिला संस्कार गीत कलाकार भी।
ऐसे सांस्कृतिक रूप से समृद्ध परिवेश मे पली बढी रीता दास को बचपन से ही राग संगीत से लगाव था। इनके गुरु बने इनके पिता प्रो सी एल दास जिन्होने उस्ताद अल्लाउद्दीन खाँ से रागों- गतों की तालीम ली थी। बाद के वर्षो मे डॉ रीता दास को उस्ताद आशीष खाँ, पं बिमलेंदु मुखर्जी और पं सुनील मुखर्जी का भी मार्गदर्शन मिला।
रीता दास ने बिहार के सभी प्रतिष्ठित सांस्कृतिक महोत्सवों, वैशाली महोत्सव, बौद्ध महोत्सव, राजगीर महोत्सव, गोवा और पटना मे आयोजित बिहार महोत्सव, केसरिया महोत्सव से लेकर देश के सभी प्रतिष्ठित संगीत समारोह में अपने सुरीले सरोद वादन से संगीत प्रेमियों का मन मोहा है।
डॉ रीता आकाशवाणी दिल्ली की ए ग्रेड कलाकार हैं और आई सी सी आर की इम्पैनेल्ड कलाकार भी।
दिल्ली में उन्होंने पं ज्योतिन भट्टाचार्य की 99वीं जयंती पर अपना सरोद वादन प्रस्तुत किया। यह कार्यक्रम देशबंधु चितरंजन मेमोरियल सोसायटी और बाबा अलाउद्दीन खाँ फांडेशन के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित किया गया था।
डॉ रीता ने अपने कार्यक्रम की शुरुआत सांध्यकालीन राग रागेश्री से की। आलाप में सुरीला और क्रमबद्ध स्वर विस्तार इनके वादन की विशेषता रही है। इसके बाद जोड और उसमे लय और छंद के विविध रूप की बानगी इन्होने प्रस्तुत की जो मैहर वादन शैली की विशेषता रही है। इसके बाद मध्य और द्रुत लय की गतें जो तानों की विविधता, टीप, जमजमा,और कृंतन से अलंकृत थीं। और झाला में भी मैहर घराने की कुछ खास शैलियाँ दिखीं। अपने कार्यक्रम का समापन डॉ रीता दास ने राग पीलू में निबद्ध एक धुन से किया। इनके साथ तबला पर थे दिल्ली के उस्ताद अख्तर हसन जिनकी लयकारियाँ और सटीक तबला संगति ने सरोद वादन में खूबसूरती बढा दी।
इस अवसर पर डॉ रीता दास ने अपना उद्गार व्यक्त करते हुए कहा कि उनके लिए यह एक भावुक क्षण है।
“बाबा अलाउद्दीन खाँ की वजह से ही सरोद मेरे परिवार में आया। उन्होने जिस तरीके से अपनी बेटी, अन्नपूर्णा जी को तंत्र वादन में निष्णात बनाया, वह ऐतिहासिक घटना है। यह घटना तो मिसाल बन गई महिलाओं के लिए। इसके बाद कई महिलाएं आईं तंत्र वादन के क्षेत्र में। बल्कि मेरे परिवार में भी सरोद मेरी माँ के बहाने ही आया। मेरे पिता से पहले मेरी माँ ने सरोद अभ्यास शुरु किया था। अतः मेरा मानना है कि बाबा अलाउद्दीन खाँ न केवल एक बडे कलाकार और गुरू थे, बल्कि हिंदुस्तानी तंत्र वादन क्षेत्र में महिला कलाकार परंपरा के भी सूत्रधार थे। स्त्री तंत्रकारों की जो परंपरा आज देश में दिखती है, उसके पीछे उनकी सोच और विजन है। मुझे बहत खुशी कि बाबा अलाउद्दीन खाँ फांउंडेशन ने मुझे याद किया।”
रीता दास ने आगे कहा कि यह कार्यक्रम पंडित ज्योतिन भट्टाचार्य की जयंती पर आयोजित था। “वे मेरे पिता के गुरू भाई थे और मुझसे अपनी बेटी जैसा स्नेह करते थे,” रीता दास ने कहा।
इस अवसर पर सभागार बडी संख्या मे दिल्ली के कलाकार, श्रीमती संघमित्रा चक्रवर्ती, अरंधति गौरी भट्टाचार्या, अजय पी झा, नागेश्वर कर्ण, रंजन कुमार, इत्यादि मौजूद रहे। पूरे कार्यक्रम का संचालन सितार वादक और आयोजक, अरूप रतन मुखर्जी ने किया।
